Tuesday, June 23, 2020

Going out doesn't save life - In Hindi

रमता राम बसै सब माहि ,ताहि राम तुम जानत नाही ।
        घट घट बोले काल की छाँही ,भेद भाव तुम जानत नाही ।
काल कला कोई जानत नाहि सुक्षम व्यापै रहै सब माही ।
       समरथ की गति काल से न्यारी ,ताको कहा जानै संसारी ।
समुझा बिना करै विवेखा ,विना विवेक सत्य को देखा ।
           बिना सत्य उतरै नही पारा ,राम राम कहि करौ पुकारा ।
ऐसे कारज होय नही भाई ,कौन भाति ते साधू कहाई ।

                                         👏👏👏👏 सतगुरु कबीर 👏👏👏👏👏

सतगुरु कबीर


पहले अपनी उलझन सुलझा ले पहले अपने से निपट लो अपनी ही इतनी उलझने है अपनी ही इतनी बिमारिया है अपनी इन उलझनो और इन बिमारीयो को लेकर तुम दुसरो के पास जावोगे तो दुसरे स्वस्थ आदमियो को भी बिमार कर दोगे उनको भी उलझा दोगे तुम खुद बिमार हो तम्हारे साधू सन्त महात्मा गुरुजन सब बिमार है जो अपने भीतर के राम को नही जानते है वो सब रुग्ण है यही तो कह रहे है सतगुरु कबीर रमता राम तो सब मे है लेकिन तुम उस राम को जानते नही हो और दुसरो के पास जाकर उस राम का बखान वैगर विवेक के करने पहुच जाते हो । कभी गौर करना अपने पर गौर करना अपने साधू सन्यासियो पर गौर करना जब वो तुमको प्रवचन देते तो कहने को तो वो भी यही कहते है ।

 " तेरा साँई तुझमे है " मोको कहा ढुँढे रे बन्दे मै तो तेरे पास मे " " सार शब्द जाने बिना कागा हंश न होय "

वैगर बैगर और उनके कृत्यौ को देखो ऐसे सब लोग मन्दिर आश्रमो मे या तो फिर पत्थर की मुर्तियौ के आगे घुटने टेके मिलगे या सुबह सुबह उठकर पोथी पथड़ियो को हाथ मे लेकर परमात्मा या सतगुरुवो की आरती को गाते हुये मिलगे तब ऐसे लोग यह भुल ही जाते है कि

 " तेरा साँई तुझमे है '" मोको कहा ढुढे रे बन्दे " और सार शब्द जाने बिना कागा हंश न होय ।

 अब ऐसे तो सार शब्द को जाना नही जा सकता है । दुनिया मे जितने भी उपद्रव ऐसे बैपैदै के लोटे के  ज्ञानीयो साधू सन्तो की वजह से हुवा है और किसी की वजह से नही हुवा है यहा पर खुद बिमार लोग दुसरे लोगो की चिकित्सा करने के लिये जगह जगह घुम रहे है यहा पागल लोग जो खुद मानसिक बिमारी के शिकार है वो दुसरो को मानसिक स्वास्थय देने के लिये घुम रहे है और जो अच्छे खासे स्वास्थय वाले लोग थे उनको अपनी मानसिक बिमारी देकर बिमार किये जा रहे है । ऐसे लोग जिन्है यही पता नही है कि हम खुद रुड़िवादी परम्पराओ  अन्धविस्वासो की दल दल मे धँसे है हम खुद सार शब्द को  नही जानते है हम खुद अपने भीतर के राम को नही जानते है  और दुसरो से कह रहे है कि " सार शब्द जाने बिना कागा हंश न होय ये मुर्दे लोग होते है जिन्है यही पता नही होता है कि हम कह क्या रहे है और कर क्या रहे है । जिसने रामनाम को अपने भीतर नही जाना वो सब मुर्दे है आज नही तो देर सबेर ऐसे लोगो को मुर्दा ही होना होगा क्यौकि जीवन का जो अमृत है उसको यदि चखा नही तो फिर जीते जी भी मुर्दे ही हो और मरने के बाद भी मुर्दे ही होगे फर्क इतना है कि जीते जी लोहार की धौकनी की तरह तुम्हारी सासे चलती है और मरने के बाद वो लोहार की धौकनी चलनी भी बन्द हो जायेगी इसी को तुम जीवन समझते हो  । यही तो जीसस ने उस मछुवारे से कहा था कि तेरा बाप पहले कौन सा जिन्दा था जो तु उसकी चिन्ता कर रहा है वह  पहले आते जाते साँसो का  मुर्दा ही था उसमे सिर्फ साँसे चलती थी और अब व साँस भी नही रही यही फर्क है । तुम्हारे अपने जीवन मे अमृत उतरा नही और जो हालत तुम्हारी चल रही है उस हालत मे तो तुम्हारे जीवन मे युग-युगान्तरो तक परमात्मा का अमृत उतरेगा भी नही और तुम दुसरो की चिन्ता मे उलझे हो जैसे तुम्हारा बेड़ा पार हो गया हो । ऐसी हालत मे जँहा तुम्हारे जीवन मिठास से भर सकता था वहा दुसरो से  परमात्मा का बखान  परमात्मा को वैगर जाने करने से तुम्हारे खुद के ही जीवन मे विष भर गया है ।तुम खुद  तो कुँवे मे पढ़े हो और दुसरो को राह बता कर  तुम दुसरो को भी कुवौ मे डुबोने की तरफ ले जा रहे हो जिस राह पर तुम खुद नही चले हो उस राह को तुम दुसरो को कैसे बता सकते हो ? सतगुरु कबीर ने कहा है ।

    👌👌"अन्धा अन्धे को ठेलिया ,दोनो कुप पडंत"👌👌 

              मतलब अन्धे ने अन्धे को राह बताई और अन्त समय मे दोनो ही कुँवे मे गिर गये । जीसस ने भी वही कहा है कि पहले अपनी आखो को खोलो खुद की जांच करो कि तुम कहा हो ?

जब तक तुम अपने भीतर के राम को नही जानते हो तब तक तुम दुसरो को राह बताने नही जाना पहले अपने भीतर के राम को जानो तब तुम्है पता लगेगा कि अपने भीतर के राम को जानने मे कितने पापड़ बैलने पड़ते है कितनी विरह की पीड़ा से गुजरना होता है कहते है ना जिसकी फटै ना पैर वैवाई वह क्या जाने पीर पराई , एक स्त्री को एक बच्चे को जनाने मे किस किस प्रकार की पीड़ा से गुजरना होता है यह वही जान सकती है यदि तुम एक बांझ स्त्री से कहो की बच्चा जनाने का दर्द क्या होता है तो वह नही बता सकती है  । अपने भीतर के राम को जानने के लिये तुम्है ठीक उसी प्रकार की पीड़ाओ से गुजरना होता है जैसे एक स्त्री अपने प्रसव पीड़ा से गुजरती है तभी भीतर राम का जन्म होता है और तभी आप अपने भीतर के राम को जान सकते है इस प्रसव पीड़ा से गुजरे वैगर तुम अपने भीतर के राम से परिचित नही हो सकते हो और जब तक ऐसा नही हो जाता है तब तक तुम बाँझ कहलावोगे ।जब तक तुम्हारे भीतर राम का जन्म नही होता तब तक तुम्हारा जीवन एक विधवा स्त्री की भाति ही होगा जिसके जीवन मे कोई रंग नही होता है और यह भी जान लेना जब तक तुम अपने भीतर के राम से परिचित नही हो जाते ह़ो तब तक तुम इस भव के काल के लखचौरासी नही छुटने वाली है तुम यहा किसी न किसी रुप मे कभी हाथी घोड़ा बिल्ली बृक्ष समुद्र मे भटकते ही रहोगे । सतगुरुवो के गाये हुये उनकी स्तुतिगान करने से आज तक कोई नही पार जा पाया है पार जाने का तो एक ही मार्ग है वह मार्ग है अपने भीतर के राम से परिचित होना  सतगुरु कबीर एकदम सही कह रहे है कि हर घट मे काल की सुक्षम छाया है और यह काल की छाया तब तक तुम्हारे शरीर से नही जाने वाली है जब तक तुम अपने भीतर अपने आत्माराम से परिचित नही हो जाते है । अपने भीतर के आत्माराम को जानना ही सत्य को पाना है और  जब तक अपने भीतर के इस आत्माराम से परिचित नही हो लेते तब तक तुम्हारी सब राम राम सब तरह की सत्यनाम सत्यनाम सब साहेब बदंगी एक बैरक के तोता रटन्त की भाति ही है जिस प्रकार यह तोता कभी पिजड़े से निकलकर बाहर जंगल की तरफ उड़ लेता है तो वह पिजड़े के राम रटन्त को भूल जाता है उसकी सब राम रटन्त स्वाहा हो जाती है ठीक उसी प्रकार तुम्हारी यह बाहर की राम राम तुम्हारे शरीर के मृत्यु के साथ ही स्वाहा हो जायेगी ।कहते है सतगुरु  कबीर ।

👌ऐसे कारज होय न भाई , कौन भाति से साधू कहाये "👌

ऐसे काम नही चलने वाला है और जब तक तुम अपने भीतर के आत्माराम से परिचित नही हो जाते हो तब तक तुमको साधू सन्त गुरु नही माना जा सकता है वही साधू वही सन्त वही गुरु जिसने अपने भीतर के राम को जाना अन्यथा किस विधि से तुमको साधू सन्त गुरु माना जा सकता है ? ऐसा मानने का कोई उपाय नही है अपनी मर्जी से तुम अपने को कुछ भी मानते रहो लेकिन इस मानने से तुम्हारे जीवन का उद्धार नही हो सकता है उद्धार तो अपने भीतर के राम को जानने से होता है राम सत्यनाम को बाहर मानने से जीवन का उद्धार नही होता है ।

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